tag:blogger.com,1999:blog-58499069925862537802023-06-20T06:56:38.304-07:00पं. भरत व्यासUnknownnoreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5849906992586253780.post-40920637888758372762010-05-30T19:18:00.000-07:002010-06-10T07:43:14.970-07:00सिने जगत के गीत-संगीत में भरत व्यास का योगदान<div align="right">-दुलाराम सहारण <span class=""></span></div><span class=""></span><br /><div align="justify"><br />राजस्थान का कण-कण सपूतों का सृजक है। इस मरुधरा में संसाधनों का अभाव भले ही हो पर प्रतिभाओं का अभाव कभी नहीं रहा। इतिहास या वर्तमान के चाहे किसी भी पहलू पर नजर जमा लो, राजस्थान अपने गर्वीले स्वरूप के साथ देदीप्यमान है। अन्य क्षेत्रों की मानिंद राजस्थानी प्रतिभाएं फिल्म-इतिहास में भी राजस्थान की समृद्ध परम्परा को जिंदा किए हुए हैं। फिल्मी इतिहास के बृहद् मूल्यांकन में राजस्थान की अनेक प्रतिभाएं सोनल रूप में उभर कर सामने आती हैं।<br />सम्पूर्ण राजस्थान को छोड़ एक बार अगर राजस्थान के छोटे-से हिस्से चूरू अंचल पर दृष्टि डाली जाए तो श्री खेमचंद्र प्रकाश, जमाल सेन, शम्भू सेन, बसंत प्रकाश, बी.एम. व्यास, निर्मल मिश्रा, पुरुषोत्तम सर्राफ, बाबूलाल खेमका, बिड़धीचंद मधुर, दिलीप सेन, समीर सेन, अशफाक हुसैन, मन्ना लढ़िया, बसंती पंवार, पं. कन्हैयालाल, पवन मिश्रा, मदनलाल पीथीसरिया, बी. हीरालाल, पं. गौरीशंकर, बी. सोहनलाल, पं. इंद्र, हिमालय दसानी, मधुकर राजस्थानी, रघुनाथ झालानी, हेमलता, हनुमान प्रसाद, गजानन वर्मा, चिन्नी प्रकाश व पं. भरत व्यास जैसे अनेक लोगों का चेहरा और काम सामने आता है।<br />इन सबके बीच पं. भरत व्यास का स्थान अग्रगण्य माना जा सकता है। पण्डित भरत व्यास के योगदान को व्याख्यायित करना तो बड़े गर्व से युक्त कार्य होगा।<br /><strong>जन्म और परिवार : </strong>राजस्थान के चूरू कस्बे में पिता श्री शिवदत्तराय व्यास के यहां आपका जन्म मार्गशीर्ष कृष्णा ८, वि.सं. १९७४ को हुआ। श्री शिवदत्तराय व्यास श्रेष्ठ सामाजिक एवं धार्मिक कार्यकर्ता रहे तथा सनातन धर्म सभा, चूरू के संस्थापक सदस्य के रूप में आज भी याद किये जाते हैं। श्री शिवदत्तराय व्यास के पिता अर्थात् भरतजी के दादा श्री घनश्यामदास व्यास भी अपनी श्रेष्ठता से समाज में सदैव सम्मानित रहे।<br />भरतजी के अग्रज श्री जर्नादन व्यास थे, जो बाद में बीकानेर जाकर बस गये। वहीं अनुज श्री बृजमोहन व्यास ने बम्बई का रास्ता पकड़ा और अपने समय के सफल निर्देशक-अभिनेताओं में शुमार हुए; जिनका बी.एम.व्यास के नाम से आज भी सम्मान है।भरतजी का श्रीमती सगुणादेवी से विवाह हुआ और समयानुकूल श्रीमती सगुणादेवी की कुक्षि से आपके एक पुत्र हुआ; जिसे आपने श्यामसुंदर नाम दिया।<br />पारिवारिक रूप से श्रेष्ठी भरतजी का दुर्योग यह रहा कि वे जब मात्र दो वर्ष के थे तभी पिता श्री शिवदत्तराय का असामयिक निधन हो गया।<br /><strong>शिक्षा :</strong> भरतजी ने प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर हाई स्कूल तक की शिक्षा चूरू में ही प्राप्त की। लक्ष्मीनारायण बागला हाईस्कूल, चूरू से हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् भरतजी उच्चाध्ययन के लिए डूंगर कॉलेज, बीकानेर में प्रविष्टि हुए। वहां से आपने कॉमर्स से इंटर की। तदुपरांत आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होने की दिशा में कलकत्ता पहुंचे लेकिन शिक्षा से लगाव बनाए रखा और आप वहां विद्या सागर कॉलेज में बी.कॉम. के विद्यार्थी बने, परंतु संघर्ष और शिक्षा दो विपरीत धाराएं बनकर खड़े हो गये।<br /><strong>रुचियां : </strong>भरतजी बचपन से ही प्रतिभा सम्पन थे। उन्हें स्कूल समय से साहित्यिक लगाव हो गया था। वे गीत पैरोडी और कविताओं की तुकबंदी करने लगे थे। कवितामय बनने के साथ-साथ वे रंगमंच पर अभिनय में भी माहिर होते गए। यही नहीं आप बॉलीबाल के अच्छे खिलाड़ी भी रहे। आपकी मजबूत कद-काठी आपकी योग्यता रही और आप डूंगर कॉलेज, बीकानेर में बॉलीबाल टीम के कप्तान के रूप में इसी कारण काफी नामी रहे।<br /><strong>साहित्य : </strong>भरतजी को मूल रूप से काव्य की गीत विधा से लगाव था लेकिन रंगमंच से जुड़ने के कारण वे नाट्य लेखन की ओर भी उन्मुख हुए और सफल गीतकार के साथ-साथ सफल नाटककार के रूप में भी अपनी पहचान स्थापित करने में कामयाब रहे। कविता, गीत और नाटक के अनेक प्रकाशन सामने आये जो आज भी भरतजी की प्रतिभा का लोहा मनवाते हैं। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं-<br />१. नाटक : रंगीला मारवाड़, ढोला मारू, तीन्यू एकै ढाळ<br />२. कविता : ऊंट सुजान, मरुधरा, राष्ट्र कथा, रिमझिम, आत्म पुकार, धूप चांदनी<br />३. गीत : तेरे सुर मेरे गीत, गीत भरा संसार आदि।<br /><strong>रंगमंच : </strong>भरतजी ने अपने मन-मस्तिक में यह तय कर लिया था कि येन-केन-प्रकारेण वे अपनी प्रतिभा से युग को रू-ब-रू करवाकर रहेंगे और वे अपने प्रयास सतत् रूप से करते रहे। चूरू में वे बचपन से ही कृष्ण का अभिनय करते रहे थे और रंगमंच पर अपनी क्षेत्रीय पहचान बना पाने में कामयाब भी हुए परंतु राष्ट्रीय स्तर पर उनके प्रयास को पहली बार सार्थकता तब मिली जब कलकत्ता के प्राचीन अल्फ्रेड थियेटर से आपका राजस्थानी नाटक 'रंगीला मारवाड़` प्रदर्शित हुआ। यह नाटक आपके निर्देशन में ही प्रदर्शित हुआ। इसकी सफलता से आपको काफी यश मिला और एक मायने में यहीं से आपके प्रगति-सोपान प्रारम्भ हुए।<br />'रंगीला मारवाड़` के बाद आपने 'रामू चनणा` एवं 'ढोला मरवण` का भी शानदार प्रदर्शन करवाया। जो काफी लोकप्रिय हुए। कलकत्ता से ही प्रदर्शित 'मोरध्वज` नाटक में आपने मोरध्वज की शानदार भूमिका भी निभाई।<br />श्री रामलाल शर्मा पत्रकार के अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध के समय भरत व्यास कलकत्ता से लौटे और कुछ समय बीकानेर रहे। बाद में वे अपने एक मित्र की सहायता से भाग्य आजमाने बम्बई की ओर रवाना हुए।<br />आगे चलकर भरतजी ने फिल्म 'पृथ्वीराज संयोगिता` में चंदबरदाई की भूमिका का भी निर्वाह किया। सन् १९४४ में शॉलीमार पिक्चर्स, पूना आपके लिए प्रतिभा-प्रदर्शन का स्थल था।<br /><strong>मंचीय कवि : </strong>श्री भरतजी व्यास सिर्फ फिल्मी गीतकार और लेखक ही नहीं अपितु मंचीय कवि भी थे। पूरे हिंदुस्तान में उस समय उनकी कविताओं की धूम थी। हजारों श्रोता कवि-सम्मेलनों में उनके नाम से उमड़ पड़ते थे। कई-कई बार तो ऐसा हुआ कि श्री भरतजी व्यास को अकेले उखड़ते श्रोताओं को चार-चार घण्टे तक जमाए रखना पड़ा।<br />श्री मुकनसिंह सहनाली के अनुसार एक बार डूंगर कॉलेज, बीकानेर में ऐसा ही हुआ। श्री भरतजी को लम्बे समय तक मंच पर जमे रहना पड़ा और श्रोताओं को जमाये रखना पड़ा। मुकनसिंहजी के अनुसार ही उदयपुर में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में भरतजी की कविता के प्रहारों का श्रोताओं पर इतना असर हुआ कि हंगामा खड़ा हो उठा। अगले रोज तत्कालीन महाराणा उदयपुर ने स्वयं वह कविता (प्रताप के वंशजों, मेवाड़ जीत क्यों खुश होते हो ....) सुनी और भरतजी को इनाम दे पुरस्कृत किया।<br />भरतजी की केसरिया पगड़ी, दो महल, बंगाल का दुष्काल, राणा प्रताप के पुत्रों से, अहमदनगर का दुर्ग, मारवाड़ का ऊंट सुजान आदि कविताएं काफी लोकप्रिय रहीं।<br /><strong>सिने गीत : </strong>तुकबंदी, कविता, पैरोडी, नाटक और अन्तत : फिल्मी दुनियां का मायावी संसार और तदानुकूल गीत। भरतजी व्यास का सफर भी यही रहा लेकिन उनकी लेखनी में एक खास बात थी तो वह थी हिन्दी प्रेम।<br />फिल्मी दुनियां में उस वक्त हिंदी प्रयोग के प्रति संघर्ष का दौर था। हिन्दी शब्दों का प्रयोग गीतों में अधिकाधिक हो, समकालीन गीतकार इसी दिशा में रत थे। भरतजी के आगमन से इस आंदोलन को और मुखरता मिली और भरतजी इस आंदोलन के अगुवा हो गये।<br />श्री मदनचंद कोठीवाल के अनुसार भरतजी ने बहुत कम गीत फिल्मों की मांग के अनुरूप लिखे। परिस्थितियों से कवि मन में भाव उत्पन्न हुए और गीत के रूप में कागज पर उतरे तथा समय पाकर वे फिल्मों में समाविष्ट होते चले गये। उन्होंने फूहड़ता और अश्लीलता का कभी साथ नहीं दिया और जहां तक हुआ इसका विरोध किया।<br />फिल्म-निर्देशक और अनुज श्री बी.एम. व्यास ने भरतजी को एक रूप में फिल्मी दुनियां में 'ब्रेक` दिया। भरतजी का पहला गीत बी.एम. व्यास ने फिल्म 'दुहाई` के लिए खरीदा और बतौर पारिश्रमिक गीतकार को दस रुपये दिए गए।<br />एक बार कदम फिल्मी डगर पर रखे गए तो भरतजी ने अपनी प्रतिभा से उन्हें थमने नहीं दिया। कदम-दर-कदम सफलता उन्हें चुमती गई और वे फिल्मी दुनियां के ख्यातनाम गीतकार बन गए।<br /><br />श्री भरत व्यास के अनेक गीत हिट रहे। कुछ हिट हिन्दी गीत तो आज भी लोकजुबान पर हैं। <span style="font-weight: bold;">एक</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">बानगी</span>-<br /><br />आधा है चंद्रमा, रात आधी................. नवरंग<br /><object classid="clsid:d27cdb6e-ae6d-11cf-96b8-444553540000" codebase="http://fpdownload.macromedia.com/pub/shockwave/cabs/flash/swflash.cab#version=8,0,0,0" id="divplaylist" width="335" height="28"><param name="movie" value="http://www.divshare.com/flash/playlist?myId=11553968-757"><embed src="http://www.divshare.com/flash/playlist?myId=11553968-757" name="divplaylist" type="application/x-shockwave-flash" pluginspage="http://www.macromedia.com/go/getflashplayer" width="335" height="28"></embed></object><br /><br />जरा सामने तो आओ छलिये ..................... जनम-जनम के फेरे<br /><object classid="clsid:d27cdb6e-ae6d-11cf-96b8-444553540000" codebase="http://fpdownload.macromedia.com/pub/shockwave/cabs/flash/swflash.cab#version=8,0,0,0" id="divplaylist" width="335" height="28"><param name="movie" value="http://www.divshare.com/flash/playlist?myId=11554350-64f"><embed src="http://www.divshare.com/flash/playlist?myId=11554350-64f" name="divplaylist" type="application/x-shockwave-flash" pluginspage="http://www.macromedia.com/go/getflashplayer" width="335" height="28"></embed></object><br /><br />ऐ मालिक तेरे बंदें हम ................................ दो आंखें बारह हाथ<br /><object classid="clsid:d27cdb6e-ae6d-11cf-96b8-444553540000" codebase="http://fpdownload.macromedia.com/pub/shockwave/cabs/flash/swflash.cab#version=8,0,0,0" id="divplaylist" width="335" height="28"><param name="movie" value="http://www.divshare.com/flash/playlist?myId=11554344-d3c"><embed src="http://www.divshare.com/flash/playlist?myId=11554344-d3c" name="divplaylist" type="application/x-shockwave-flash" 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codebase="http://fpdownload.macromedia.com/pub/shockwave/cabs/flash/swflash.cab#version=8,0,0,0" id="divplaylist" width="335" height="28"><param name="movie" value="http://www.divshare.com/flash/playlist?myId=11553997-2d3"><embed src="http://www.divshare.com/flash/playlist?myId=11553997-2d3" name="divplaylist" type="application/x-shockwave-flash" pluginspage="http://www.macromedia.com/go/getflashplayer" width="335" height="28"></embed></object><br /><br /><span><br />कहा</span> <span>भी</span> <span>न</span> <span>जाए</span>, <span>चुप</span> <span>रहा</span> <span>भी</span> <span>न</span> <span>जाए</span> .................. <span>बदर्द</span> <span>जमाना</span> <span>क्या</span> <span>जाने</span><br /><span>निर्बल</span> <span><span class=" transl_class" title="Click to correct" id="5085">की</span></span> <span>लड़ाई</span> <span>बलवान</span> <span>की</span>, <span>यह</span> <span>कहानी</span> ........... <span>तूफान</span> <span>और</span> <span>दीया</span> (<span>सन्</span> <span>१९५६</span> <span>का</span> <span>सर्वश्रेष्ठ</span> <span>गीत</span>)<br /><span>आ</span> <span>लौट</span> <span>के</span> <span>आजा</span> <span>मेरे</span> <span>मीत</span> ....................... <span>रानी</span> <span>रूपमति</span><br /><span>चली</span> <span>राधे</span> <span>रानी</span> <span>भर</span> <span>अंखियों</span> <span>में</span> <span>पानी</span> <span>अपने</span> ......... <span>परिणिता</span><br /><span>चाहे</span> <span>पास</span> <span>हो</span>, <span>चाहे</span> <span>दूर</span> <span>हो</span> ...................... <span>सम्राट</span> <span>चंद्रगुप्त</span><br /><span>ओ</span> <span>चांद</span> <span>ना</span> <span>इतराना</span> ......................... <span>मन</span> <span>की</span> <span>जीत</span><br /><br />हिन्दी गीतों के अलावा भरतजी ने अनेक राजस्थानी फिल्मों के लिए गीतों का भी प्रणयन किया। श्री बैजनाथ पंवार के अनुसार भरतजी के राजस्थानी गीत काफी ख्यात हुए और राजस्थानी सिनेमा को एक नया आयाम मिला। राजस्थानी गीत 'थानै काजळियो बणाल्यूं-नैणां में रमाल्यूं .....`, ओजी ओ भरतार-म्हैं तो नखराळी नार.....`, म्हे तो लेके आया बरात ......` तथा 'देवरजी आयी होळी .......` आदि गीत तो काफी प्रसिद्धि को प्राप्त हुए। </div><br /><div align="justify"><strong><span class=""></span></strong></div><br /><div align="justify"><strong>प्रमुख फिल्में :- </strong>श्री भरत व्यास ने लगभग १२० से अधिक फिल्मों में गीत दिए; जिनमें से कुछ प्रमुख फिल्में इस ढंग से हैं-<br />अंगुलीमाल<br />अंजनी<br />अंधेर नगरी चौपट राजा<br />अन्याय<br />अपनी इज्जत<br />अभिज्ञान शाकुंतल<br />अमर समाधि<br />अमरसिंह राठौड़<br />आंखें<br />आगरा रोड<br />आधी रोटी<br />उम्मीद पर दुनिया कायम<br />ऊंची हवेली<br />कवि जयदेव<br />काली गोरी<br />कालीदास<br />कीचक वध<br />कुरुक्षेत्र<br />गज गौरी<br />गुलामी<br />गूंज उठी शहनाई<br />गृहलक्ष्मी<br />चंद्रमुखी<br />चंद्रलेखा<br />चंद्रलोक<br />चैतन्य महाप्रभु<br />छोटा बाप<br />छोटी बहू<br />जगत ्गुरु शंकराचार्य<br />जन्माष्टमी<br />जनम-जनम के फेरे<br />जय अम्बे<br />जय चित्तौड़<br />जय हनुमान<br />ढोला मारू<br />तमाशा<br />तीन भाई<br />तूफान और दीया<br />दाल में काला<br />दुर्गापूजा<br />दुहाई<br />दो आंखें बारह हाथ<br />दो दोस्त<br />धर्मपत्नी<br />धुन<br />नखरे<br />नया कदम<br />नया सवेरा<br />नवरंग<br />नवरात्रि<br />नागपूजा<br />नौलखा हार<br />प्यार की प्यास<br />पति परमेश्वर<br />पतित पावन<br />परिणिता<br />पारसमणि<br />पिया मिलन की आस<br />प्रेम संगीत<br />पृथ्वीराज चौहान<br />पृथ्वीराज संयोगिता<br />फूल और कलियां<br />फूलों का हार<br />फैशन<br />फैशनेबल वाइफ<br />बड़ी बहू<br />बहूरानी<br />बाबा रामदेव<br />बालयोगी उपमन्यु<br />बिजली<br />बेताब<br />बेदर्द जमाना क्या जाने<br />भक्तराज<br />भीमसेन<br />भोला शंकर<br />मन की जीत<br />मां<br />मिस एक्स<br />मीराबाई<br />मुकद्दर<br />मुरलीवाला<br />मोरध्वज<br />मौसी<br />याद तेरी आये<br />रंगीला राजस्थान<br />राज प्रतिज्ञा<br />राजमुकुट<br />राजरत्न<br />राजा गोपीचंद<br />राजा विक्रम<br />राजा हरिश्चंद्र<br />रानी रूपमति<br />राम लक्ष्मण<br />रिमझिम<br />लक्ष्मी पूजा<br />ललकार<br />लाल किला<br />वीर दुर्गादास<br />शिवकन्या<br />शुक रम्भा<br />शेषनाग<br />श्रवणकुमार<br />श्रीगणेश जन्म<br />श्रीगणेश विवाह<br />स्कूल मास्टर स्वर्ण सुंदरी<br />संत रघु<br />संत ज्ञानेश्वर<br />सती अनुसूया<br />सती वैशालिनी<br />सपना<br />सम्पूर्ण रामायण<br />सम्राट अशोक<br />सम्राट चंद्रगुप्त<br />साक्षी गोपाल सारंगा<br />सावन आया रे<br />सिंहल द्वीप की सुंदरी<br />हम हिन्दुस्तानी<br />हमारा घर<br /><strong>गीत और गीतकार : </strong>पं. भरत व्यास के गीतों की शैली समकालीन गीतकारों से भिन्न थी। वे एक रूप में साहित्यिक गीतकार थे। उनके गीतों में तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग बढ़-चढ़कर हुआ। संगीत के आधार पर या फिर पटकथा के आधार पर गीत लिखने की परम्परा या बाध्यता को भरतजी ने कभी नहीं माना। स्वयं की निज अनुभूतियों को वे शब्दबद्ध करते और समयानुकूल फिल्मों में शामिल करते। यथा- एक पारिवारिक घटना के संदर्भ में उन्होंने पीड़ा शब्दांकित की; जो बाद में फिल्म 'जनम-जनम के फेर`े में लता मंगेश्कर और मोहम्मद रफी की आवाज से व एस.एन. त्रिपाठी के संगीत से काफी प्रसिद्धि को प्राप्त हुई-<br />जरा सामने तो आओ छलिये<br />छुप-छुप के छलने में क्या राज है<br />यूं छुप ना सकेगा परमात्मा<br />मेरी आत्मा की ये आवाज है<br />जरा .............................<br />हम तुम्हें चाहें, तुम नहीं चाहो, ऐसा कभी ना हो सकता<br />पिता अपने बालक से बिछुड़ के सुख से कभी ना सो सकता<br />हमें डरने की जग में क्या बात है<br />जब हाथ में तिहारे मेरी लाज है<br />जरा .............<br />प्यार की है ये आग सजन, ओ इधर लगे और उधर बूझे<br />प्रीत का है ये राग पिया, जो इधर बजे और उधर सजे<br />तेरी प्रीत पे हमंे बड़ा नाज है<br />मेरे सर का तू ही तो सरताज है<br />यूं छुपा ना ...... जरा सामने ...........।</div><br /><div align="justify"><br />कहा जाता है कि भरत व्यास धार्मिक आस्था के कवि थे। प्रार्थना के रूप में लिखे एक गीत ने उन्हें काफी व्यापक रूप से स्थापित किया। यह गीत बसंत देसाई के संगीत के साथ फिल्म 'दो आंखें बारह हाथ` में बजा। लता मंगेश्कर की आवाज पर एक नजर-<br />ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हों हमारे करम<br />नेकी पर चलें और बदी से टलें<br />ताकि हंसते हुए निकले दम,<br />ऐ मालिक ................<br />ये अंधेरा घना छा रहा, तेरा इंसान घबरा रहा<br />हो रहा बेखबर कुछ न आता नजर<br />सुख का सूरज छिपा जा रहा, है तेरी रोशनी में जो दम<br />तो अमावस को कर दे पूनम<br />नेकी पर चले और बदी से टलें<br />ऐसे हों हमारे करम<br />ऐ मालिक .......।</div><br /><div align="justify"><br />पं. भरत व्यास के शब्दों में मायावी युग के विभिन्न रूपों को प्रकट करने की सार्थक क्षमता रही। उत्साह, उमंग में वे जहां आल्हादित करते हैं वहीं निराशा में टूटते हुए सपनों को जोड़ने का प्रयास करते हैं। फिल्म 'बेदर्द जमाना क्या जाने` में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में व्यासजी के शब्द कुछ यूं उभरते हैं और मो. रफी गाते चले जाते हैं-<br />कैद में है बुलबुल सैयाद मुस्कराए<br />कहा भी ना जाए चुप रहा भी न जाए<br />कैसी ये दुनियां कैसी ये रीत है<br />आंखों में आंसू होठों पे गीत है<br />झनके रे पायल दिल है घायल<br />जालिम जमाने क्या ये ही तेरी जीत है<br />बागवां के हाथों में कली कुम्हलाए<br />कहा भी न जाए चुप रहा भी न जाए ..........<br />धोखे फरेब का पक्ष डाले, लाखों छिपे यहां भंवरे काले<br />प्यासे लबों पर जहरी प्याले, कोई कहां तक खुद को संभाले<br />मेंहदी रची हाथों में कांटों चुभे जाए<br />कहा भी न जाए चुप रहा भी न जाए ....।</div><br /><div align="justify"><br />भारतीय संस्कृति का मूल समर्पण रहा है। भले कुछ ही करना पड़े पटकथा को समर्पण की ओर मोड़ना निर्माता-निर्देशकों की मजबूरी रही। ऐसी स्थिति में लिखे गीत किसी भी फिल्म में कहीं भी शामिल हो सकते हैं। फिल्म 'सती सावित्री` में मन्नाडे और लता मंगेश्कर तभी तो भरत व्यास का गीत गाते हैं और दर्शक लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की धुनों के साथ थिरकता चला जाता है-<br />मन्नाडे : तुम गगन के चंद्रमा हो, मैं धरा की धूल हूं<br />तुम प्रणय के देवता हो, मैं समर्पित फूल हूं<br />तुम हो पूजा मैं पुजारी तुम सुधा मैं प्यास हूं<br />तुम गगन ........................<br />लता : तुम महासागर की सीमा मैं किनारे की लहर<br />तुम महासंगीत के स्वर, मैं अधूरी सांस हूं<br />तुम हो काया मैं हूं छाया तुम क्षमा मैं भूल हूं<br />तुम प्रणयक ..........।</div><br /><div align="justify"><br />फिल्म की स्थितियां भी गीत निर्माण में अहम् निर्णायक होती हैं। हालांकि भरतजी ने लगभग गीत आत्म प्रेरित होकर लिखे परंतु उनके लिखे गीतों का अगर सम्यक् अध्ययन किया जाए तो कुछ गीत ऐसे भी जान पड़ते हैं जो पूर्णतया फिल्मी मांग पर लिखे गए। 'बेदर्द जमाना क्या जाने` का यह गीत कुछ ऐसा ही महसूस होता है-<br />लकड़ी जल कोयला भई, कोयला जल भयो राख<br />मैं पापिन ऐसी जली ना कोयला भई ना राख।<br />कोई आंसूं पीकर जीता है कोई टूटे दिल सीता है<br />कहीं शाम ढले कहीं चिता जले कहीं गम से तड़पते दीवाने<br />बेदर्द जमाना क्या जाने-२<br />ओ मालिक तेरा कैसा आलम<br />यहां एक खुशी तो लाख है गम<br />बारात कहीं तो कहीं मातम, किस्मत के अपने-अपने अफसाने<br />बेदर्द जमाना क्या जाने-२<br />कांप उठा सिंदूर मांग का, वो सुहागन की रात टली<br />रानी बनकर आई थी, वो आज भिखारन बनके चली<br />छूटा है घर जाये किधर अपने भी हुए बेगाने<br />बेदर्द ..........................-२<br />उस शाम का होगा सवेरा जहां<br />, ये पंछी लेगा बसेरा वहां<br />ये पवन है अगन और गरजता गगन<br />धरती भी लगी अब ठुकराने<br />बेदर्द ...............................<br />जालिम को अपने जुल्मों की होती कभी पहचान भी है<br />इंसान तेरी आंखों में भगवान भी है शैतान भी है<br />कश्ती से किनारा रूठ गया ये धकेलती है लहर और आगे<br />कोई भी नहीं अब पहचाने<br />बेदर्द .......................<br />चिंंगारी से चिंगारी जले और आग से आग सुलगती है<br />ये बात सरासर सच्ची है कि चोट पे चोट लगाती है<br />जिन हाथों में मोतियों की लड़ी, उनमें पड़ी है हथकड़ियां<br />अपना ही भाग लगा है आग लगाने<br />बेदर्द .................................।</div><br /><div align="justify"><br />आशा भोंसले की आवाज और ऊषा खन्ना के संगीत से सजा-संवरा फिल्म 'नागपूजा` का यह गीत भी इसी भांति का एक गीत है-<br />मैं बालक तुम जगपालक-२<br />इतना सा वरदान दो<br />मेरे दुखिया मात पिता को<br />नवजीवन नवप्राण दो<br />जुग जुग से रोती है अंखियां<br />अब तो प्रभु मुस्कान दो<br />नीलकण्ठ वाले निलाम्बर<br />नीलमणि का दान दो<br />हे शेषनाग अब जाग-जाग<br />हे शेषनाग अब जाग हजारों फनवाले<br />बालक की लाज अब आज तुम्हीं<br />रखने वाले हे शेषनाग<br />विष्णु की सेज के सिंगार तुम्हीं<br />शिवजी के गले के हार तुम्हीं<br />अपने मस्तक पर लिए हुए<br />सारी धरती का भार तुम्हीं<br />मैं तेरी शरण आया काली कमली वाले<br />बालक की लाज अब आज तुम्हीं<br />रखने वाले हे शेषनाग......<br />प्रहलक ने अपनी आन निभाई<br />ध्रुव ने भी जग में शान दिखाई<br />मां बाप का सेवक श्रवण भी निकला सच्चा......<br />मैं भी हूं आखिर उन जैसा ही बच्चा......<br />नन्ही-सी जान लाया हूं देवता अपना ले<br />बालक की लाज अब आज तुम्हीं<br />रखने वाले हे शेषनाग<br />अगर तेरी पुकार आज खाली जाएगी.....<br />आसमां हिलेगा धरा डिगमगाएगी.....<br />ओ हठीले अपना हठ छोड़ दे.........<br />तोड़ दे समाधि अपनी तोड़ दे.......<br />शेषनाग जाग जाग शेषनाग<br />जाग-जाग-जाग ।</div><br /><div align="justify"><br />गायक कलाकार की आवाज के अनुरूप लेखन भी हिन्दी फिल्म-गीतकारों ने किया। जहां मुकेश की आवाज में पूर्ण दर्द, मोहम्मद रफी की आवाज में आंशिक दर्द तो किशोर कुमार की आवाज में अल्हड़पन। लता मंगेश्कर की आवाज में जहां संजीदगी तो आशा भौंसले की आवाज में तरंग। गायक कलाकारों की उपलब्धता भी गीतकारों को कभी-कभी निर्माताओं की ओर से बाध्य करती। वे उसी ढंग के गीत फिल्म के लिए चाहते जैसा गायक नफासत से गा सके। मोहम्मद रफी के लिए लिखा गया 'गूंज उठी शहनाई` फिल्म का यह गीत कुछ ऐसा ही है-<br />बिखर गये बचपन के सपने अरमानों की शाम ढले<br />कहीं सजे बारात किसी की कहीं किसी का प्यार जले<br />कह दो कोई ना करे यहां प्यार<br />इसमें खुशियां है कम बेशुमार है गम<br />इक हंसी और आंसू हजार<br />कह दो ......................<br />प्रीत पतंगा दिये से करे-२<br />उसकी ही लौ में वो जल जल मरे<br />मुश्किल राहें यहां अश्क और आहें यहां<br />इसमें चैन नहीं ना करार, कह दो ...............<br />हमने तो समझा था फूल खिले-२<br />चुनचुन के देखा तो कांटे मिले<br />ये अनोखा जहां हरदम धोखा यहां<br />इस वीराने में कैसी बहार,<br />कह दो कोई ..........<br />इसमे खुशियां है इक हंसी<br />कह दो कोई...............।<br /></div><br /><div align="justify">गम-खुशियों के अलावा अल्हड़पन, शरारत भी जीवन का एक हिस्सा है। उसमें एक अलौकिक आनंद है, जो जीवन बहाव में निरंतरता लाता है। फिर भला भरत व्यास की लेखनी उससे अछूती कैसे रहती ? 'सम्राट चंद्रगुप्त` के लिए लिखे गये गीत में कल्याणजी आनंदजी के संगीत ने तो जान ही डाल दी थी। एक दृष्टि-<br />लता : जा तोसे नहीं बोलूं, घूंघट नहीं खोलूं<br />क्यों चोरी मुझसे यूं नजरें मिलाये<br />रफी : रूठो न यूं अलबेली हमने तो की अठखेली<br />क्यों गोरी-गोरी सूरत घूंघट में छुपाये<br />लता : जा तोसे नहीं बोलूं<br />तुम तो सजन मन के चितचोर ....।</div><br /><div align="justify"><br />विदाई और आगमन। कहीं विदाई होगी तब ही कहीं आगमन होगा। भरतजी विदाई को किस ढंग से फिल्म में प्रविष्टि दिलाते हैं। काबिले-गौर है-<br />मेंहदी रचा बिंदिया सजा, जाओ पियाजी के देस<br />मगर हमें भूल न जाना, भूल न जाना - २<br />जितना प्यार मुझे पाना था तेरे राज में पा ही गया<br />इस घर पली उस घर चली, जाओ पियाजी के देस<br />मगर हमें भूल ..................................<br />हर कांटे को फूल बनाना हर मुश्किल में मुस्काना<br />जा के वहां मेरी प्यारी बहना सबके मन में बस जाना<br />ओ लाडली कोमल कली, जाओ पियाजी के देस<br />मगर हमें .............................<br />रीत रिवाजों की दुनिया में जीवन का संदेश है<br />वो घर अब तेरा घर बहना, ये घर अब परदेस है<br />उस घर चलो फूली फली, जाओ पियाजी के देस<br />मगर हमें .................................।</div><br /><div align="justify"><br />उक्त गीत के माध्यम से आशा भोंसले ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में भरतजी को अमर बना दिया।<br />प्यार की शाश्वतता और एक-दूजे के प्रति दिवानगी ही बस जीवन की गतिशीलता है। वहां व्यक्ति मन से मन के करीब होता है। यही तो भरतजी ने फिल्म 'सम्राट चंद्रगुप्त` में अपने गीत के माध्यम से कहा-<br />लता : चाहे पास हो, चाहे दूर हो<br />मेरे सपनों की तुम तस्वीर हो<br />रफी : हो चाहे पास हो चाहे दूर हो<br />मेरे जीवन की तुम तकदीर हो<br />लता : ओ परदेशी भूल न जाना<br />हमने किया तुझे दिल नजराना<br />रफी : दिल ये हमारा तूने न जाना<br />सीखा है हमने भी वादा निभाना<br />चाहे पास ......<br />जब तक चमके चांद सितारे<br />हम हैं तुम्हारे तुम हो हमारे<br />लता : सागर की दो लहरें पुकारे<br />मिलके रहेंगे दोनों किनारे<br />दोनों : मेरे सपनों की तुम तस्वीर हो।</div><br /><div align="justify"><br />हिन्दी शब्दों के प्रति मोह भरतजी के अनेक गीतों में स्वत: दृश्यमान होता है। वे हिन्दी भाषा के प्रति समर्पित गीतकार थे। आयातित भाषा से बेहतर अपनी जुबान होती है। उसमें भावों का वैसा ही प्रवाह संभव है, जैसा इतर किसी भाषा में। ये कोई जानने के प्रति उत्सुक हो तो भरतजी के 'जय हनुमान` फिल्म का यह गीत उल्लेखनीय है-<br />ये अशोक वाटिका सुहानी, फूलों भरा बसंत ...<br />वृक्ष लताओ तुम्ही बताओ, अब होगा विरह का अंत<br />तुम कहां हो प्राण प्यारे, मैं हूं इतनी दूर तुम से<br />जिसने धरती से है तारे, तुम हो तो प्राण प्यारे<br />तुम कहां हो प्राण प्यारे मैं हूं इतनी दूर तुमसे<br />तुमसे बिछुड़ के ओ जीवन धन<br />नयनों में जल और मन में अगन<br />मन के वियोगन में जी न सकूं<br />संदेशा तू ले जा पवन, हम हैं दोनों दूर ऐसे<br />हम हैं दोनों दूर ऐसे<br />जैसे नदिया से किनारे तुम कहां हो प्राण प्यारे<br />मैं हूं इतनी दूर तुमसे<br />जितने धरती से हैं तारे, तुम कहां हो प्राण प्यारे<br />आता सवेरा ढलती है शाम<br />होता यूं ही मेरा जीवन तमाम<br />पंथ निहारूं पुकारूं तुम्हें, बोलो कहां तुम हो<br />सीता के राम पास इतने दूर कितने<br />जैसे दो नैना बेचारे, तुम हो कहां हो प्राणप्यारे।</div><br /><div align="justify"><br />पण्डित भरत व्यास ने इन्हीं सब संघर्षों और परिस्थितियों के बीच अपनी साहित्यिक साख को बचाए रखा। यह फिल्मी गीतकार के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होती है। भावनाओं को अलग रखकर मांग और प्रसिद्धि का तारतम्य मायानगरी में बैठाना समीचीन होता है। भरतजी मांग और प्रसिद्धि को भी छूते रहे तथा भावनाओं को भी संजोएं रखा, तभी तो उनकी कलम से 'संत ज्ञानेश्वर` फिल्म के बहाने यह गीत निस्सृत हुआ-<br />जोत से जोत जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो<br />राह में आये जो दीन दु:खी सबको गले से लगाते चलो<br />जिसका न कोई संगी साथी ईश्वर है रखवाला<br />जो निर्धन है जो निर्बल है वो है प्रभुता का प्यारा<br />प्यार के मोती लुटाते चलो, जोत से ..........................<br />आशा टूटी ममता रूठी छूट गया है किनारा<br />बंद करो मत द्वार दया का है जो कुछ हो सहारा<br />दीप दया का जलाते चलो, जोत से ................................<br />छाया है चहुं ओर अंधेरा भटक गई है दिशायें<br />मानव वन बैठा दानव किसको व्यथा सुनाये<br />धरती को स्वर्ग बनाते चलो<br />जोत से ..............................।</div><br /><div align="justify"><br /><strong>इतर योगदान : </strong>श्री भरत व्यास ने गीत, अभिनय के अलावा फिल्मी दुनियां के अन्य क्षेत्रों में भी योगदान दिया। श्री नंदकिशोर केजड़ीवाल के अनुसार उन्होंने फिल्म 'अंधेर नगरी चौपट राजा`, 'ढोला मरवण`, 'रामू चनणा` में कथा-पटकथा-सम्वाद लिखे एवं 'रंगीला मारवाड़`, 'ढोला मरवण` का निर्देशन किया तथा 'गुलामी`, 'पृथ्वीराज संयोगिता`, 'आगे बढ़ो` में अभिनय भी किया। केजड़ीवाल के अनुसार भरतजी ने 'चंद्रलेखा`, 'नवरंग`, 'स्त्री` में गाया भी। 'स्कूल मास्टर` में उन्होंने संगीत निर्देशन भी किया।<br /><strong>निधन : </strong>सुप्रसिद्ध सिने गीतकार, कवि, नाटककार, खिलाड़ी और अभिनेता श्री भरत व्यास का निधन आसाढ़ सुदी १२, वि.सं. २०३९, रविवार तदनुसार ४ जुलाई, १९८२ ई. को बम्बई में हुआ।<br />ऐसे सपूत कभी मरते नहीं हैं। सही मायने में भरत व्यास आज भी अमर हैं। भरत व्यास का सिने जगत को दिया योगदान उन्हें कभी विस्मृत नहीं होने देगा। पण्डित भरत व्यास को शत-शत नमन्।<br /><br /><strong>पं. भरत व्यास के गीत :</strong><br />फिल्म : दो आंखें बारह हाथ </div><br /><div align="justify">संगीत : बसंत देसाई </div><br /><div align="justify">गायक : लताव </div><br /><div align="justify">ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हों हमारे करम </div><br /><div align="justify">नेकी पर चलें और बदी से टलेंताकि हंसते हुए निकले दम,</div><br /><div align="justify">ऐ मालिक ................ये अंधेरा घना छा रहा, </div><br /><div align="justify">तेरा इंसान घबरा रहाहो रहा बेखबर कुछ न आता नजरसुख का सूरज छिपा जा रहा, </div><br /><div align="justify">है तेरी रोशनी में जो दमतो अमावस को कर दे पूनमनेकी पर चले और बदी से टलेंऐसे हों हमारे करमऐ मालिक .......।<br />---------------------<br />फिल्म : बेदर्द जमाना क्या जाने </div><br /><div align="justify">संगीत : लक्ष्मीकांत प्यारेलाल </div><br /><div align="justify">गायक : लताव </div><br /><div align="justify">कैद में है बुलबुल सैयाद मुस्कराएकहा भी ना जाए चुप रहा भी न जाएकैसी ये दुनियां कैसी ये रीत है आंखों में आंसू होठों पे गीत हैझनके रे पायल दिल है घायलजालिम जमाने क्या ये ही तेरी जीत हैबागवां के हाथों में कली कुम्हलाएकहा भी न जाए चुप रहा भी न जाए ..........धोखे फरेब का पक्ष डाले, लाखों छिपे यहां भंवरे कालेप्यासे लबों पर जहरी प्याले, कोई कहां तक खुद को संभालेमेंहदी रची हाथों में कांटों चुभे जाएकहा भी न जाए चुप रहा भी न जाए ....।<br />----------------------------</div><br /><div align="justify">फिल्म : बेदर्द जमाना क्या जाने </div><br /><div align="justify">संंगीत : कल्याणजी आनंदजी </div><br /><div align="justify">गायक : रफीव </div><br /><div align="justify">लकड़ी जल कोयला भई, कोयला जल भयो राखमैं पापिन ऐसी जली ना कोयला भई ना राख।</div><br /><div align="justify">कोई आंसूं पीकर जीता है कोई टूटे दिल सीता हैकहीं शाम ढले कहीं चिता जले कहीं गम से तड़पते दीवानेबेदर्द जमाना क्या जाने-२ओ मालिक तेरो कैसा आलमयहां एक खुशी तो लाख है गमबारात कहीं तो कहीं मातम, किस्मत के अपने-अपने अफसानेबेदर्द जमाना क्या जाने-२कांप उठा सिंदूर मांग का, वो सुहागन की रात टलीरानी बनकर आई थी, वो आज भिखारन बनके चलीछूटा है घर जाये किधर अपने भी हुए बेगानेबेदर्द ..........................-२उस शाम का होगा सवेरा जहां, ये पंछी लेगा बसेरा वहांये पवन है अगन और गरजता गगनधरती भी लगी अब ठुकरानेबेदर्द ...............................जालिम को अपने जुल्मों की होती कभी पहचान भी हैइंसान तेरी आंखों में भगवान भी है शैतान भी हैकश्ती से किनारा रूठ गया ये धकेलती है लहर और आगेकोई भी नहीं अब पहचानेबेदर्द .......................चिंंगारी से चिंगारी जले और आग से आग सुलगती हैये बात सरासर सच्ची है कि चोट पे चोट लगाती हैजिन हाथों में मोतियों की लड़ी, उनमें पड़ी है हथकड़ियांअपना ही भाग लगा है आग लगानेबेदर्द .................................।<br />---------------------</div><br /><div align="justify">फिल्म : सती सावित्री </div><br /><div align="justify">संगीत : लक्ष्मीकांत प्यारेलाल </div><br /><div align="justify">गायक : मन्नाडे/लता व </div><br /><div align="justify">मन्नाडे : तुम गगन के चंद्रमा हो, मैं धरा की धूल हूंतुम प्रणय के देवता हो, मैं समर्पित फूल हूंतुम हो पूजा मैं पुजारी तुम सुधा मैं प्यास हूंतुम गगन ........................</div><br /><div align="justify">लता : तुम महासागर की सीमा मैं किनारे की लहर तुम महासंगीत के स्वर, मैं अधूरी सांस हूं तुम हो काया मैं हूं छाया तुम क्षमा मैं भूल हूं तुम प्रणयक ..........।<br />--------------------------<br />फिल्म : संत ज्ञानेश्वर </div><br /><div align="justify">संगीत : लक्ष्मीकांत प्यारेलालव </div><br /><div align="justify">जोत से जोत जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलोराह में आये जो दीन दु:खी सबको गले से लगाते चलोजिसका न कोई संगी साथी ईश्वर है रखवालाजो निर्धन है जो निर्बल है वो है प्रभुता का प्याराप्यार के मोती लुटाते चलोजोत से ..........................आशा टूटी ममता रूठी छूट गया है किनाराबंद करो मत द्वार दया का है जो कुछ हो सहारादीप दया का जलाते चलोजोत से ................................छाया है चहुं ओर अंधेरा भटक गई है दिशायेंमानव वन बैठा दानव किसको व्यथा सुनायेधरती को स्वर्ग बनाते चलोजोत से ..............................।<br />----------------------<br />फिल्म : जनम-जनम के फेरे </div><br /><div align="justify">संगीत : एस।एन. त्रिपाठी </div><br /><div align="justify">गायक : रफी-लताव </div><br /><div align="justify">जरा सामने तो आओ छलियेछुप-छुप के छलने में क्या राज हैयूं छुप ना सकेगा परमात्मामेरी आत्मा की ये आवाज हैजरा .............................हम तुम्हें चाहें, तुम नहीं चाहो, ऐसा कभी ना हो सकतापिता अपने बालक से बिछुड़ के सुख से कभी ना सो सकताहमें डरने की जग में क्या बात हैजब हाथ में तिहारे मेरी लाज हैजरा .............प्यार की है ये आग सजन, ओ इधर लगे और उधर बूझेप्रीत का है ये राग पिया, जो इधर बजे और उधर सजेतेरी प्रीत पे हमंे बड़ा नाज हैमेरे सर का तू ही तो सरताज हैयूं छुपा ना ...... जरा सामने ...........।<br />----------------------<br />फिल्म : सम्राट चंद्रगुप्त </div><br /><div align="justify">संगीत : कल्याणजी आनंदजी </div><br /><div align="justify">गायक : लता-रफीव </div><br /><div align="justify">लता : चाहे पास हो, चाहे दूर हो मेरे सपनों की तुम तस्वीर होरफी : हो चाहे पास हो चाहे दूर हो मेरे जीवन की तुम तकदीर होलता : ओ परदेशी भूल न जाना हमने किया तुझे दिल नजरानारफी : दिल ये हमारा तूने न जाना सीखा है हमने भी वादा निभाना चाहे पास ...... जब तक चमके चांद सितारे हम हैं तुम्हारे तुम हो हमारेलता : सागर की दो लहरें पुकारे मिलके रहेंगे दोनों किनारेदोनों : मेरे सपनों की तुम तस्वीर हो। </div><br /><div align="justify">---------------------------<br />फिल्म : सम्राट चंद्रगुप्त </div><br /><div align="justify">संगीत : कल्याणजी आनंदजी </div><br /><div align="justify">गायक : लता-रफी<br />व लता : जा तोसे नहीं बोलूं, घूंघट नहीं खोलूं क्यों चोरी मुझसे यूं नजरें मिलायेरफी : रूठो न यूं अलबेली हमने तो की अठखेली क्यों गोरी-गोरी सूरत घूंघट में छुपायेलता : जा तोसे नहीं बोलूं तुम तो सजन मन के चितचोर ....।<br />-----------------------<br />फिल्म : छोटा बाप </div><br /><div align="justify">संगीत : लक्ष्मीकांत प्यारेलाल </div><br /><div align="justify">गायिका : आशा भोंसलेव </div><br /><div align="justify">मेंहदी रचा बिंदिया सजा, जाओ पियाजी के देसमगर हमें भूल न जाना, भूल न जाना - २जितना प्यार मुझे पाना था तेरे राज में पा ही गयाइस घर पली उस घर चली, जाओ पियाजी के देसमगर हमें भूल ..................................हर कांटे को फूल बनाना हर मुश्किल में मुस्कानाजा के वहां मेरी प्यारी बहना सबके मन में बस जानाओ लाडली कोमल कली, जाओ पियाजी के देसमगर हमें .............................रीत रिवाजों की दुनिया में जीवन का संदेश हैवो घर अब तेरा घर बहना ये घर अब परदेस हैउस घर चलो फूली फली, जाओ पियाजी के देसमगर हमें .................................।<br />-------------------------------<br />फिल्म : नागपूजा </div><br /><div align="justify">संगीत : ऊषा खन्ना </div><br /><div align="justify">गायक : आशा भोंसलेव </div><br /><div align="justify">मैं बालक तुम जगपालक-२इतना सा वरदान दोमेरे दुखिया मात पिता कोनवजीवन नवप्राण दोजुग जुग से रोती है अंखियांअब तो प्रभु मुस्कान दोनीलकण्ठ वाले निलाम्बरनीलमणि का दान दोहे शेषनाग अब जाग-जागहे शेषनाग अब जाग हजारों फनवालेबालक की लाज अब आज तुम्हींरखने वाले हे शेषनागविष्णु की सेज के सिंगार तुम्हींशिवजी के गले के हार तुम्हींअपने मस्तक पर लिए हुएसारी धरती का भार तुम्हींमैं तेरी शरण आया काली कमली वालेबालक की लाज अब आज तुम्हींरखने वाले हे शेषनागआलाप ................प्रहलक ने अपनी आन निभाईध्रुव ने भी जग में शान दिखाईमां बाप का सेवक श्रवण भी निकला सच्चाआलाप......मैं भी हूं आखिर उन जैसा ही बच्चाआलाप......नन्हीं सी जान लाया हूं देवता अपना लेबालक की लाज अब आज तुम्हींरखने वाले हे शेषनागअगर तेरी पुकार आज खाली जाएगीआलाप.....आसमां हिलेगा धरा डिगमगाएगीआलाप.....ओ हठीले अपना हठ छोड़ देआलाप.........तोड़ दे समाधि अपनी तोड़ देआलाप.......शेषनाग जाग जाग शेषनागजाग-जाग-जाग ।<br />------------------------------<br />फिल्म : जय हनुमान </div><br /><div align="justify">संगीत : नारायणदत्त </div><br /><div align="justify">गायक : आशा भोंसलेव </div><br /><div align="justify">ये अशोक वाटिका सुहानी, फूलों भरा बसंत ...वृक्ष लताओ तुम्ही बताओ, अब होगा विरह का अंततुम कहां हो प्राण प्यारे, मैं हूं इतनी दूर तुम सेजिसने धरती से है तारे, तुम हो तो प्राण प्यारेतुम कहां हो प्राण प्यारे मैं हूं इतनी दूर तुमसेतुमसे बिछुड़ के ओ जीवन धननयनों में जल और मन में अगनमन के वियोगन में जी न सकूं मेरा संदेशा तू ले जा पवन, हम हैं दोनों दूर ऐसेहम हैं दोनों दूर ऐसेजैसे नदिया से किनारे तुम कहां हो प्राण प्यारेमैं हूं इतनी दूर तुमसेजितने धरती से हैं तारे, तुम कहां हो प्राण प्यारेआता सवेरा ढलती है शामहोता यूं ही मेरा जीवन तमामपंथ निहारूं पुकारूं तुम्हें, बोलो कहां तुम होसीता के राम पास इतने दूर कितनेजैसे दो नैना बेचारे, तुम हो कहां हो प्राणप्यारे।<br />-----------------------------------<br />फिल्म : गूंज उठी शहनाई </div><br /><div align="justify">संगीत : बसंत देसाई </div><br /><div align="justify">गायक : रफी<br />बिखर गये बचपन के सपने अरमानों की शाम ढलेकहीं सजे बारात किसी की कहीं किसी का प्यार जलेकह दो कोई ना करे यहां प्यारइसमें खुशियां है कम बेशुमार है गमइक हंसी और आंसू हजारकह दो ......................प्रीत पतंगा दिये से करे-२उसकी ही लौ में वो जल जल मरेमुश्किल राहें यहां अश्क और आहें यहांइसमें चैन नहीं ना करार,कह दो ...............हमने तो समझा था फूल खिले-२चुनचुन के देखा तो कांटे मिलेये अनोखा जहां हरदम धोखा यहांइस वीराने में कैसी बहार, कह दो कोई ..........इसमे खुशियां है इक हंसीकह दो कोई...............।<br />---------------------------------------</div>Unknownnoreply@blogger.com3